आओ
- Aadishaktii S.
- Jan 20
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This post is sourced from my old blog.
Original Blog Date: May 22, 2022
आओ बैठो पहलू में, कि दो साँसें हम संग लें।
कुछ तुम मेरा स्याह चुनो, हम तुमसे थोड़े रंग लें।
हम बोलेंगे तुमसे कुछ, तुम आँखों से पढ़ना कुछ और।
हम जब सन्नाटे में खोएँ, तुम होठों पर करना गौर।
एक रात गरज-बरसेगी हमपर, यादों की बरसात तले।
हम भीगेंगे जी खोल के उसमें, हो जाएँ बीमार भले।
उस बीमारी में, आज़ारी में, तुम्हें ओढ़कर सो लेंगे।
तुम ना हो तो खुद को उस बीमारी में ही हम खो देंगे।
बीमारी है क्या ये कोई कहा कभी है समझ सका?
बस ये रोगी-जोगी होकर, है दुनिया से खूब थका।
पर फिलहाल तुम अपनी यादों का चिराग सुलगा जाओ,
और गर हो पाए तो, अब बस जल्दी घर आओ।
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